क्यों कहते है ? mahakumbh स्नान से मिल जाती है समस्त पापों से मुक्ति / क्या हैं kumbh से mahakumbh के पीछे का रहस्य

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khumbh mahakumbh

आख़िर क्या है kumbh के पीछे की कहानी….

kumbh पर्व के आयोजन से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन सबसे प्रचलित कथा देवताओं और दानवों द्वारा समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त करने की है।

कहा जाता है कि महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए थे। इस अवसर का लाभ उठाकर दानवों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और उन्हें पराजित कर दिया।
पराजय के बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और सहायता की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने सलाह दी कि वे दानवों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करें और अमृत निकालें। देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया और जब अमृत कलश निकला तो इंद्र का पुत्र जयंत उसे लेकर आकाश में भाग गया।
इस पर शुक्राचार्य के आदेश पर दानवों ने जयंत का पीछा किया। अमृत कलश को लेकर जयंत और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जो लगातार बारह दिनों तक चलता रहा। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें धरती पर चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक पर गिरी। मान्यता है कि चंद्रमा ने अमृत कलश से बूंदों को गिरने से बचाया, सूर्य ने कलश को टूटने से बचाया, गुरु (बृहस्पति) ने राक्षसों से रक्षा की और शनि ने देवताओं को भय से मुक्त किया। अंत में भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अमृत को सभी में वितरित किया और युद्ध को समाप्त किया।

क्या है कुंभ से mahakumbh तक की कहानी ...

जब ग्रहों (सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति) की स्थिति वैसी ही होती है जैसी अमृत प्राप्ति के समय थी, तो उन पवित्र स्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। इसलिए जहां-जहां अमृत गिरा, वहां-वहां कुंभ मेला मनाया जाता है।

कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 साल में किया जाता है और महाकुंभ का आयोजन हर 144 साल में एक बार घटता है। यह मेला प्रयागराज में विशेष रूप से आयोजित किया गया है। mahakumbh 12 कुंभ मेलों के बाद होता है, यानी हर 12 बार कुंभ मेले के बाद यह विशेष महा कुंभ का आयोजन होता है। 144 वर्ष और 12 कुंभ होने के बाद यह आता है इसीलिये इसे महाकुंभ के नाम से जाना जाता है यह मेला अन्य कुंभ मेलों से भी अलग होता है, क्योंकि यह बहुत अधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है और लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक अद्वितीय है अवसर होता है।

आख़िर क्यों ? कहां जाता है महाकुंभ स्नान से मिलती है सारे पापो से मुक्ति?

ज्योतिष गणना के अनुसार, कुम्भ मेला मकर संक्रांति के दिन से प्रारंभ होता है। इस समय सूर्य और चंद्रमा वृश्चिक राशि में होते हैं, जबकि बृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इस विशेष संयोग को “कुंभ स्नान-योग” कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह शुभ अवसर धरती से स्वर्ग और अन्य उच्च लोकों के द्वार खुलते हैं। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है क्योंकि इससे आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि इस स्नान को स्वर्ग दर्शन के समान माना जाता है और महाकुंभ में स्नान करने से समस्त पाप धुल जाता है और पापो से मुक्त हो जाता है, हिंदू धर्म में इसका बहुत गहरा महत्व है।

कहते हैं कि देवताओं के ये बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्षों के बराबर होते हैं। इसलिए हर 12 साल में कुंभ मेला मनाया जाता है। इनमें से चार कुंभ मेले धरती पर लगते हैं और बाकी आठ कुंभ देवताओं की दुनिया में लगते हैं, जहां सिर्फ देवता ही जा सकते हैं।

क्यों विशेष महत्व है Prayagraj में कुम्भ स्नान का ?

शास्त्रों में प्रयागराज को ‘तीर्थों का राजा’ कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने यहीं पहला यज्ञ किया था। इस स्थान का उल्लेख महाभारत और कई अन्य पुराणों में भी एक पवित्र स्थान के रूप में किया गया है जहाँ धार्मिक अनुष्ठान किए जाते थे इसीलिये ,प्रयागराज में कुम्भ स्नान का महत्व कई गुना बढ़ जाता है ।

कुंभ मेलों के प्रकार

1. महाकुंभ मेला:

महाकुंभ मेला केवल प्रयागराज में आयोजित होता है। यह सबसे बड़ा मेला है, जो 144 सालों में एक बार या 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद आता है।

2. पूर्ण कुंभ मेला:
यह हर 12 साल में आयोजित होता है। भारत के चार पवित्र स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक—में यह बारी-बारी से आयोजित किया जाता है।
3. अर्ध कुंभ मेला:
इसका अर्थ है “आधा कुंभ मेला”। यह हर 6 साल में केवल दो स्थानों—हरिद्वार और प्रयागराज—में होता है।
4. कुंभ मेला:
यह हर 3 साल में चारों पवित्र स्थलों पर राज्य सरकारों द्वारा आयोजित किया जाता है। इसमें लाखों श्रद्धालु धार्मिक आस्था और उत्साह के साथ भाग लेते हैं।
5. माघ मेला (मिनी कुंभ मेला):
इसे मिनी कुंभ भी कहा जाता है। यह हर साल केवल प्रयागराज में आयोजित होता है। यह मेला हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने में आयोजित किया जाता है।

कुंभ मेले की तिथि और स्थान कैसे तय होते हैं ?

kumbh मेले के आयोजन की तिथि और स्थान ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करते हैं। इसमें सूर्य और बृहस्पति ग्रह की खास भूमिका होती है। जब सूर्य और बृहस्पति अलग-अलग राशियों में प्रवेश करते हैं, तभी कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इसी खगोलीय स्थिति के आधार पर स्थान और तिथि तय होती है।

1. प्रयागराज: जब बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं, तो kumbh मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है।
2. हरिद्वार: जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं, तब kumbh मेला हरिद्वार में आयोजित होता है।
3. नासिक: जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं, तब नासिक में kumbh मेला आयोजित किया जाता है।
4. उज्जैन: जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तब kumbh मेला उज्जैन में आयोजित होता है। विशेष बात यह है कि उज्जैन के कुंभ मेले को सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है क्योंकि इसमें सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश होना मुख्य कारण है।

इस प्रकार, कुंभ मेले का आयोजन खगोलीय गणना और ग्रहों की स्थिति के आधार पर तय किया जाता है।

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